Sunday, August 18, 2013

junbishen 59



ग़ज़ल 

जिस तरह से तुम दिलाते हो, खुदाओं का यकीं ,
उस तरह से और बढ़ जाती है, शुबहों की ज़मीं.

है ये भारत भूमि, फूलो और फलो पाखंडियो,
मिल नहीं सकती शरण, संसार में तुम को कहीं.

नंगे, गूंगे संत के, मैले कुचैले पाँव पर,
हाय रख दी है, तुम ने क्यूँ ये इंसानी जबीं.

गर है माज़ी के तअल्लुक़ से ये माथे की शिकन,
तब कहाँ बच पाएँगे, इमरोज़ ओ फ़र्दा के अमीं.

नन्हीं नन्हीं नेक्यों, कमज़ोर सी बादियों के साथ,
कट गई यह जिंदगी इन पे लगाए दूरबीं.

हो अमल जो भी हमारा, दिल भी इस के साथ हो,
है दुआ तस्बीहे "मुंकिर" क्यूं मियाँ लेते नहीं।

*जबीं=सर *इमरोज़ ओ फ़र्दा =आज और कल 

1 comment:

  1. नदियाँ इनकी दरिया इनका, इनकी ही सब किश्तियाँ..,
    ये नन्हीं नन्हीं नेकियाँ, ऐ दिल अब फेंकें भी तो कहाँ.....

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