ग़ज़ल
थीं बहुत कुछ सूरतें अहदों उसूलों से भली,
जान लेने जान देने में ही तुम ने काट दी।
भेडिए, साँपों, सुवर, के साथ ही यह तेरे लब,
पड़ चुके किस थाल में हैं,ऐ मुक़द्दस आदमी।
नेक था सरवन मगर,सीमित वो होकर रह गया,
सेवा में माँ बाप के ही, काट डाली ज़िन्दगी।
ढूंढो मत इतिहास के, जंगल में शेरों का पता,
ऐ चरिन्दों! क्या हुवा, जो पा गए सींगें नई।
आप ने देखा नहीं, क्या न मुकम्मल था ख़ुदा ,
ख़ैर छोडो, अब चलो खोजें, मुकम्मल आदमी।
करता है बे चैन "मुंकिर" देके कुछ सच्ची ख़बर,
सच का वह मुख़बिर बना है, इस लिए है दुश्मनी.
बिक रहा ख़बर में हर अखबार आदमी..,
ReplyDeleteख़रीदे है सरकार, हो खबरदार आदमी.....
चरिंदा = चौपाया
ReplyDelete