ग़ज़ल
मैं अकेला, तू अकेला, सब अकेले हैं यहाँ,
दे रहा उपदेश स्वामी, भीड़ में बैठा वहाँ।
जन हिताय उपवनों के, शुद्ध पावन मौन में,
धर्म की जूठन परोसे, हैं जुनूनी टोलियाँ।
जज्बा ऐ शर१ देखिए, उस मर्द ए मोमिन में ज़रा,
या शहीदे जंग होगा, या तो फिर गाज़ी मियां।
बिक गया है कुछ नफ़े के साथ, वह तेरा हबीब,
बाप की लागत थी उस पे, माँ का क़र्ज़े आस्मां।
मैं समझता हूँ नवाहो-गिर्द2 पे ग़ालिब हूँ मैं,
ग़लबा ए रूपोश जैसा गिर्द3 है मेरे जहाँ।
हर तरफ़ *बातिल हैं छाए, और जाहिल की पकड़,
कैसे "मुंकिर" इल्म अपना, झेले इनके दरमियाँ।
१-दुष्ट-भाव मीठी-आस-पास ३-चहु ओर *बातिल =मिथ्य
सत्य सरल वक्ता की वाणी किसको नहीं लुभाएगी..,
ReplyDeleteघातक की धारि तलवार मोहित होकर मुड़ जाएगी.....
----- ॥ श्याम नारायण पाण्डे ॥ -----