Saturday, July 9, 2011

शक बहक


नज़्म 

शक बहक




यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
इक मरहला1 है गुमाँ 2को समझो ।



यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
खिरद 3के आबे- रवां को समझो ।



अक़ीदतें और आस्थाएँ ,
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र 4हैं ।



ख़रीदती हैं यह सादा लौही 5,
यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो ।

१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक



2 comments:

  1. यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
    खिरद 3के आबे- रवां को समझो ।

    वाह...लाजवाब कर दिया आपने...

    नीरज

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  2. शुक्रिया नीरज साहब!

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