नज़्म
शक बहक
यकीं बहुत कर चुके हो यारो ,
इक मरहला1 है गुमाँ 2को समझो ।
यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
खिरद 3के आबे- रवां को समझो ।
अक़ीदतें और आस्थाएँ ,
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र 4हैं ।
यकीं की धुंधली सी रह गुज़र 4हैं ।
ख़रीदती हैं यह सादा लौही 5,
यकीं की नाक़िस दुकाँ को समझो ।
१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक
यकीं है अक्सर तुम्हारी गफ़लत ,
ReplyDeleteखिरद 3के आबे- रवां को समझो ।
वाह...लाजवाब कर दिया आपने...
नीरज
शुक्रिया नीरज साहब!
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