ग़ज़लमुतलेआ१ करे चेहरों का चश्मे नव खेजी२,
छलक न जाए कहीं यह शराब ए लब्रेजी.
हलाकतों पे है माइल३ निजामे चंगेजी,
तरस न जाए कहीं आरजू ए खूँ रेजी.
अगर है नर तो बसद४ फ़िक्र शेर पैदा कर,
मिसाले गाव, बुज़, ओ खर५ है तेरी ज़र खेज़ी.
तू अपनी मस्त खरामी पे नाज़ करती फिर,
लुहा, लुहा से न डर, ए जबाने अंग्रेजी.
नए निज़ाम६ के जानिब क़दम उठा अपने,
ये खात्मुन७ की सदा छोड़ कर ज़रा तेजी.
बचेगी मिल्लत खुद बीं८ की आबरू "मुंकिर",
अगर मंज़ूर हूँ मंसूर९ शम्स ओ तबरेज़ी.
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१ अध्ययन २-किशोरी चितवन ३-ध्यानाकर्षित ४-सैकड़ा ५- गे, बकरी,गधे ६-व्यावस्था ७-आखिरी ८- स्यंभू ९- दो संत मंसूर और तबरेज़
१ अध्ययन २-किशोरी चितवन ३-ध्यानाकर्षित ४-सैकड़ा ५- गे, बकरी,गधे ६-व्यावस्था ७-आखिरी ८- स्यंभू ९- दो संत मंसूर और तबरेज़
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