नज़्म
ताज़ियाने एहसासे कम्तरो२ तुम, ज़ेहनी गदागरो3तुम,
पैरों में रह के देखा, अब सर में भी रहो तुम।
इनकी सुनो न उनकी, ऐ मेरे दोस्तों तुम,
अपनी खिरद4 की निकली, आवाज़ को सुनो तुम।
अपनी खिरद4 की निकली, आवाज़ को सुनो तुम।
दुनिया की गोद में तुम, जन्में थे, बे-ख़बर थे,
ज़ेहनी बलूग़तों5 में, इक और जन्म लो तुम।
अंधे हो गर सदाक़त, कानो से देख डालो,
बहरे हो गर हक़ीक़त, आखों से अब सुनो तुम।
ख़ुद को संवारना है, धरती संवारनी है,
दुन्या संवारने तक, इक दम नहीं रुको तुम।
मैं ख़ाक लेके अपनी, पहुँचा हूँ पर्वतों तक,
ज़िद में अगर अड़े हो, पाताल में रहो तुम।
२-हीनाभासी3-तुच्छाभास ४-बुद्धि ५-बौधिक
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