नज़्म
मशविरे
छोड़ो पुरानी राहें, सभी हैं गली हुई,
राहें बहुत सी आज भी, हैं बे चली हुई।
महदूद1 मोहमिलात२ में, क्यूं हो फंसे हुए,
ढूँढो जज़ीरे आज भी हैं, बे बसे हुए।
ढूँढो जज़ीरे आज भी हैं, बे बसे हुए।
ऐ नौ जवानो अपना, नया आसमां रचो,
है उम्र अज़्मो-जोश३ की, संतोष से बचो।
है उम्र अज़्मो-जोश३ की, संतोष से बचो।
कोहना रिवायतों4 की, ये मीनार तोड़ दो,
धरती पे अपनी थोडी सी, पहचान छोड़ दो।
धरती पे अपनी थोडी सी, पहचान छोड़ दो।
धो डालो इस नसीब को, अर्क़े जबीं५ से तुम,
अपने हुक़ूक़६ लेके ही मानो ज़मीं से तुम।
अपने हुक़ूक़६ लेके ही मानो ज़मीं से तुम।
फ़रमान हों ख़ुदा के, कि इन्सान के नियम,
इन सब से थोड़ा आगे, बढ़ाना है अब क़दम।
१ -सीमित २ -अर्थ -हीन ३- उत्साह ४ -पुराणी मान यातें ५ -माथे का पसीना ६ -अधिकार .
इन सब से थोड़ा आगे, बढ़ाना है अब क़दम।
१ -सीमित २ -अर्थ -हीन ३- उत्साह ४ -पुराणी मान यातें ५ -माथे का पसीना ६ -अधिकार .
बहुत उम्दा ग़ज़ल है जनाब!
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