Tuesday, July 26, 2011

ग़ज़ल - - - तू है रुक्न अंजुमन का तेरी अपनी एक खू है


तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक खू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.
 
वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख रू है, बेकुसूर ज़र्द रू है.
 
तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.
 
मुझे खौफ है खुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.
 
वोह नहीं पसंद करते जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.
 
तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही ओशो,
कि बहुत सी भंग पी लूँ तो ये पाऊँ तू ही तू है.
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* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.

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