Thursday, March 26, 2009

ग़ज़ल - - - रिश्ता नाता कुनबा फिरका सारा जग ये झूठा है


ग़ज़ल 

रिश्ता नाता कुनबा फ़िर्क़ा, सारा जग ये झूठा है,
जुज्व की नदिया मचल के भागी, कुल का सागर रूठा है।

ज्ञानेश्वर का पत्थर है, और दानेश्वर की लाठी है,
समझ की मटकी बचा के प्यारे, भाग्य नहीं तो फूटा है।

बन की छोरी ने लूटा है, बेच के कंठी साधू को,
बाती जली हुई मन इसका, गले में सूखा ठूठा है।

चिंताओं का चिता है मानव, मंसूबों का बंधन है,
बिरला पंछी फुदके गाए, रस्सी है न खूटा है।

सुनता है वह सारे जग की, करता है अपने मन की,
सीने के भीतर रहता है, मेरा यार अनूठा है।

लिखवाई है हवा के हाथों, माथे पर इक राह नई,
"मुंकिर" सब से बिछड़ गया है, सब से रिश्ता टूटा है।

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1 comment:

  1. Hi Junaid, was wondering if you are aware of the Delhi NCR IndiBlogger Meet 2009 scheduled for the 4th of April. Would be great if you can make it and blog about the event too.

    Please send in your ideas for the agenda in the comments section.

    RSVP - http://www.indiblogger.in/bloggermeet.php?id=33

    Cheers,
    Anwin
    IndiBlogger.in

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