Thursday, March 19, 2009

ग़ज़ल - - - उनकी हयात उसकी नमाजों के वास्ते


ग़ज़ल

उनकी हयात, उसकी नमाज़ों के वास्ते,
मेरी हयात, उसके के ही राज़ों के वास्ते।

मुर्शिद के बांकपन के, तक़ाज़ों को देखिए,
नूरानियत है, जिस्म गुदाज़ों के वास्ते।

मंज़िल को अपनी, अपने ही पैरों से तय करो,
है हर किसी का कांधा, जनाज़ों के वास्ते।

सासें तेरे वजूद की, नग़मो की नज़र हों,
जुंबिश बदन की हों, तो हों साज़ों के वास्ते।

गाने लगी है गीत वोह, नाज़िल नुज़ूल की,
बुलबुल है आसमान के, बाज़ों के वास्ते।

"मुंकिर" वहां पे छूते, छुवाते हैं पैर को,
बज़्मे अजीब, दो ही तक़ाज़ों के वास्ते।


मुर्शिद=आध्यात्मिक गुरु *जिस्म गुदजों =हसीनाओं *नाज़िल नुज़ूल =ईश वानियाँ

2 comments:

  1. muaafi chahunga magar gazal ke dusare she'r me kafiye me gadbadi hai... meri baaton ko anyatha naa len main bhi sikhne ki prakriya me hun...
    gazal ka kahan bahot hi umda hai ...dhero badhaee...

    arsh

    ReplyDelete
  2. जहाँ तक मुझे लगता है आप गुदाजों लिखना चाहते थें मगर गलती से गुद्जों लिख गया है
    मुझे मक्ता बहुत अच्छा लगा
    वीनस केसरी

    ReplyDelete