Sunday, March 1, 2009

ग़ज़ल - - - नई सी सिंफे सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो




ग़ज़ल

दुश्मनी गर बुरों से पालोगे,
ख़ुद को उन की तरह बना लोगे।

तुम को मालूम है, मैं रूठूँगा,
मुझको मालूम है,  मना लोगे।

लम्स1 रेशम हैं, दिल है फ़ौलादी ,
किसी पत्थर में, जान डालोगे।

मेरी सासों के डूब जाने तक,
अपने एहसान, क्या गिना लोगे।

दर के पिंजड़े के, ग़म खड़े होंगे,
इस में खुशियाँ, बहुत जो पालोगे।

सूद दे पावगे, न "मुंकिर" तुम,
क़र्ज़े ना हक़, को तुम १ लोगे।
1-स्पर्श


ग़ज़ल


नई सी सिंफ़े सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, खुशी की, न ग़म की बात करो।

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही, दिलेरी की दम की बात करो।

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक़ की, धर्म की बात करो।

मुआमला है, करोड़ों की जिंदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश 7हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।

तलाशे सिद्क़े ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब ख़ुदा की, सनम की बात करो।

बहुत ही खून पिए जा रहे हैं, ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को, जो दैरो हरम12 की बात करो।



१-काव्य-विधा २-नई बात ३-कुर्सी ४-सम्पूर्ण-संधि ५-पूँजी ६-नया संविधान ७-शरीर का कान बन जाना ८-धरती की लटें ९-अनिस्तत्व --क्षितिजि-सच्चाई ११-चुम्बकीय १२-मंदिरों-मस्जिद

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