Sunday, July 8, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 109 सुब्ह फिर शुरू हुई है, आँखें फिर हुई न हैं नम,


109

सुब्ह फिर शुरू हुई है, आँखें फिर हुई न हैं नम,
चल गरानी ए तबअ, सर पे रख के अपने ग़म.

नेअमतें हज़ार थीं, इक ख़ुलूस ही न था,
तशना रूह हो गई, भर गया था जब शिकम.

बे यक़ीन लोग हैं, उन सितारों की तरह,
टिमटिमा रहे हैं कुछ, और दिख रहे है कम.

उँगलियाँ थमा दिया था, मैं ने उस कमीन को,
कर के मुझको सीढ़ियाँ, सर पे रख दिया क़दम.

कहर न गज़ब है वह, फ़ितरी वाक़ेआत हैं,
तुम मुक़ाबला करो, वोह है माइल ए सितम.

राज़दार हो चुका है, कायनात का जुनैद,
जुज़्व बे बिसात था, कुल में हो गया है ज़म.

तबअ=तबीयत . तशना प्यासी , शिकम=पेट फ़ितरी=प्राक्र्तिक , माइले=आमादा , जुज़्व= अंश 

،صبح پھر شروع ہوئی، آنکھیں پھر ہوئیں ہیں نم 
چل گرانیِ حیات، سر پہ رکھ کے اپنے غم٠ 

،نعمتیں ہزار تھیں، اک خلوص ہی نہ تھا 
تشنہ روح رہ گئی تھی، بھر گیا تھا جب شکم٠ 

،بے یقین لوگ ہیں، اُن ستاروں کی طرح 
ٹِمٹِما رہے ہیں کچھ ، اور دِکھ رہے ہیں کم٠ 

،اُنگلیاں تھما ئی تھی، میں نے اُس کمین کو
کر کے ہم کو سیڑھیاں، سر پہ رکھ کے دیا قدم٠

،قہر نہ غضب ہیں وہ، فطری واقعات ہیں 
تم مقابلہ کرو، وہ ہے مائلِ ستم٠ 

،رازدار ہو گیا ہے، کائنات کا جنید 
جزو بے بساط تھا، کل میں ہو گیا ہے ضم٠ 

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