Friday, July 6, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 107 नई सी सिंफ़ ए सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,


107

नई सी सिंफ़ ए  सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, ख़ुशी की, न ग़म की बात करो.

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुल्ह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही, दिलेरी की दम की बात करो.

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक़ की, धरम की बात करो.

मुआमला है, करोड़ों की जिंदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो.

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो.

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश7 हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो.

तलाशे सिद्क़े ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब ख़ुदा की, सनम की बात करो.

बहुत ही ख़ून पिए जा रहे हैं, ये 'मुंकिर'
क़सम है तुम को, जो दैर व् हरम12 की बात करो.

१-काव्य-विधा २-नई बात ३-कुर्सी ४-सम्पूर्ण-संधि ५-पूँजी ६-नया संविधान 
७-शरीर का कान बन जाना ८-धरती की लटें  
९-अनिस्तत्व --क्षितिजि-सच्चाई ११-चुम्बकीय १२-मंदिरों-मस्जिद

،نئی سی صنف سخن ہو، نعم کی بات کرو 
نہ جھوٹ سچ کی، خوشی کی، نہ غم کی بات کرو٠ 

،نہ بیٹھ جانا، کہ مسند ہے صلحِ کل کی یہ 
کھڑے کھڑے ہی دلیری کی، دم کی بات کرو٠ 

،اتار آؤ عقیدت کو، ساتھ جوتوں کے 
ہمارے بزم میں حق کی، دھرم کی بات کرو٠ 

،معاملہ ہے کروڑوں کی زندگی کا یہ 
سیاستوں کے کھلاڑی، نہ بم کی بات کرو٠ 

،یہ چاہتے ہو ہمہ تن ہی گوش ہو جایں 
ہوں الجھے، گیسو ے ارضی، عدم کی بات کرو٠ 

،تلاش صدق خلا، کتنے مقنا تیشی ہیں 
نہ اب جناب! خدا وصنم کی بات کرو٠ 

،بہت ہی خون پئے جا رہے ہیں یہ منکر 
قسم ہے تم کو جو دیر وحرام کی بات کرو٠ 

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