Tuesday, February 12, 2019

जुंबिशें - - - यह जम्हूरियत

ग़ज़ल

ये जम्हूरियत बे असर है,
संवारे इसे, कोई नर है?

बहुत सोच कर खुद कशी कर,
किसी का तू , नूर ए नज़र है.

दिखा दे उसे क़ौमी दंगे,
सना ख्वान मशरिक, किधर है.

बहुत कम है पहचान इसकी,
रिवाजों में डूबा बशर है.

है ऊपर न जन्नत, न दोज़ख,
ख़ला है, नफ़ी है, सिफ़र है.

इबादत है, रोज़ी मशक्क़त,
अज़ान ए कुहन, पुर ख़तर है.

ये सोना है, जगने की मोहलत,
जगो! ज़िन्दगी दांव पर है.

है तक़लीद बेजा ये 'मुंकिर',
तेरे जिस्म पर एक सर है.

*जम्हूरियत=गण-तन्त्र *नूरे नज़र=आँख का तारा * तकलीद=अनुसरण.
 *सना ख्वान मशरिक=पूरब का गुण-गण करने वाले*खला, नफ़ी=क्षितिज एवं शून्य 

یہ جمہوریت بے اثر ہے
سنوارے اسے کوئی نر ہے٠ 

بہت سوچ کر خود کشی کر 
کسی کا تو نور نظر ہے٠ 

دکھا دے اسے قومی دنگے 
ثنا خوانِ مشرق کدھر ہے٠ 

بہت کم ہے پہچان اسکی 
رِواجوں میں ڈوبا بشر ہے٠ 

نہیں بن سکا فرد انساں 
کہاں پر یہ باقی کثر ر ہے٠ 

ہے اوپرنہ جنّت نہ دوزخ، 
خلاء ہے، نفی ہے، صفر ہے٠ 

عبادت ہے روزی مشقت 
اذان کُہن پر خطر ہے٠ 

یہ سونا ہے جگنے کی مہلت 
جگو! زندگی دانو پر ہے٠ 

ہے تقلید بے جہ یہ منکر 
ترے جسم پر ایک سر ہے٠ 

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