Monday, October 20, 2014

Junbishen 243


रूबाइयाँ

माइल बहिसाब यूँ न होना था तुम्हें ,
मालूम न था अज़ाब होना था तुम्हें,
हंगामे-जवानी की मेरी तासवीरों,
इतनी जल्दी ख़राब होना था तुन्हें?



पंडित जी भी आइटम का ही दम ले आए,
तुम भी मियाँ परमाणु के बम ले आए,
लड़ जाओ धर्म युद्ध या मज़हबी जंगें ,
हम सब्र करेगे, उम्र कम ले आए.



तेरी मर्ज़ी पे है, मै बे दाग मरूँ,
हल्का हूँ पेट का, सुबकी को चरुं,
'मुनकिर' को नहीं हज्म बहुत से मौज़ूअ.
गीबात न करे तू तो, मैं चुगली न करून, 

1 comment:

  1. स्याह पत्थर यूँ न नायाब होना था तुम्हें..,
    रफ्ता रफ्ता ही पूरताब होना था तुम्हे..,
    बालुदा दरिया है इक सेहरा है दुनिआ..,
    जरो-ग़ैरो-मनकूल सराब होना था तुम्हे.....?

    सराब = मृग मरीचिका

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