Monday, October 27, 2014

Junbishen 246


गज़ल

वह्म का परदा उठा क्या, हक था सर में आ गया . 
दावा ए पैगंबरी हद्दे बशर में आ गया .

खौफ़ के बेजा तसल्लुत ने बग़ावत कर दिया ,
डर का वह आलम जो ग़ालिब था, हुनर में आ गया 
.
याद ए जाना तक थी बेहतर, आक़बत की फ़िक्र से ,
क्यों दिले ए नादाँ, तू ज़ाहिद के असर में आ गया .

जितनी शिद्दत से तहफ़्फ़ुज़ की दुआ कश्ती में थी ,
उतनी तेज़ी से सफ़ीना, क्यों भंवर में आ गया .

छोड़ कर हर काम, मेरी जान तू लाहौल पढ़ ,
मंदिरो मस्जिद का शैतां फिर नगर में आ गया .

एक दिन इक बे हुनर बे इल्म और काहिल वजूद ,
दीन की पुड़िया लिए, मुंकिर के घर में आ गया .

1 comment:

  1. बात करता था जो पैगम्बरों-पीर की फ़क़ीर की..,
    चश्मे-हैवाँ से चला आबो-सुर्खो-साग़र में आ गया.....

    चश्मे-हैवाँ = अमरत का कुण्ड

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