Sunday, October 5, 2014

Junbishen 236


  
कूकुर से बछिया भए , बछिया से मृग राज ,
नेता बैठे मंच पर , सर पे रख्खे ताज .


प्रजा तंत्र के मन्त्र में , बेबस है वन्चास ,
इक्यावन की मौज है , बाकी का उपहास .


बस जा अपने आप में , फिर दुन्या की जान ,
पंडित जी की रागनी , मुल्ला जी की तान .


धन साधन चुक जाए जब , भूख का हो आभास ,
मुंकिर नाक दबाए के रोकीं लीनेह सांस .


देखो उसके बाल ओ पर निकले हैं शादाब ,
सब से पहले ए हवा , दे मेरे आदाब .


 दिन अब अच्छे आए हैं , क़र्ज़ा देव चुकाए ,
ऐसा हरगिज़ मत किहौ , यह बच्चन पर जाए .

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