Saturday, October 18, 2014

Junbishen 242




गज़ल


शाखशाना कोई अज़मत नहीं है,
भूल जाने में कुछ दिक़्क़त नहीं है .

दिल है नालां मगर नफरत नहीं है ,
वह मेरा आशना वहशत नहीं है.

मेरी जानिब से शर मुमकिन नहीं है ,
दिल दुखाना मेरी आदत नहीं है.

सच है दिल में , भटक रहे हो अबस,
दैर या फिर हरम में, सत् नहीं है.

आजज़ी कर चुके मुंकिर बहुत ,
और झुकने की अब ताक़त नहीं है.

मिल गया सब, मगर राहत नहीं है,
कह भी मुंकिर कि अब चाहत नहीं है.

1 comment:

  1. अपनी कज अदाई पे तू भी ही शर्मिंदा..,
    मुझमें भी पहली सी वो कुल्फ़त नहीं है..,

    अल्लाह से कुछ जिंदगी कर्ज में मांगे..,
    वो बोले कल आना अभी फुरसत नहीं है..,

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