Friday, May 16, 2014

Junbishen 288




गज़ल

हर शब की क़ब्रगाह से, उठ कर जिया करो,
दिन भर की ज़िन्दगी में, नई मय पिया करो।

उस भटकी आत्मा से, चलो कुछ पता करो,
इस बार आइना में बसे, इल्तेजा करो।

दिल पर बने हैं बोझ, दो मेहमान लड़े हुए,
लालच के संग क़ेनाअत1, इक को दफ़ा करो।

तुम को नजात देदें, शबो-रोज़ के ये दुःख,
ख़ुद से ज़रा सा दूर, जो फ़ाज़िल गिज़ा करो।

दरवाज़ा खटखटाओ, है गर्क़े-मुराक़्बा2,
आई नई सदी है, ज़रा इत्तेला करो।

'मुंकिर' को क़त्ल कर दो, है फ़रमाने-किब्रिया3 ,
आओ कि हक़ शिनास को, मिल कर ज़िबा करो।

१-संतोष २-तपस्या रत ३-ईश्वरीय आगयान

2 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति...
    आप ने लिखा...
    मैंने भी पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पड़ें...
    इस लिये आप की ये रचना...
    19/05/2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
    पर लिंक गयी है...
    आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना...

    ReplyDelete
  2. बाप रे, बहुत मुश्किल है गज़ल की भाषा। काश कि आप शब्दों के अर्थ भी देते। जितनी समझ आई उतनी अचछी लगी।

    ReplyDelete