Tuesday, May 27, 2014

Junbishen 282




गज़ल

चाहत है तेरी, और तेरा इंतेख़ाब है,
क्या दोस्त तेरा, तेरी तरह लाजवाब है?

सो लेना चाहिए, तुझे कुछ देर के लिए,
नींद की हालत में, यह बेजा खिताब1 है।

है एक ही नुमायाँ, वहाँ चाँद की तरह,
बाक़ी हसीन चेहरों के, रुख पे नकाब है।

शायर है बेअमल, कि इसे बा अमल करो,
चक्खी नहीं कभी, मगर मौज़ूअ शराब है।

क़ानून क़ाएदों के, उसूलों की नींद में ,
उस घर में घुस गया, जहाँ जीना सवाब है।

रोका नहीं है भीड़ ने, टोका है, रुका हूँ,
'मुंकिर' को रोक ले, ये भला किस में ताब है।

१ -संबोधन


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