गज़ल
तुम भी अवाम की, ही तरह डगमडा गए,
मेरे यकीं के शीशे पे, पत्थर चला गए.
घायल अमल हैं, और नज़रिया लहू लुहान,
तलवार तुम दलील की, ऐसी चला गए.
मफरूज़ा हादसात, तसुव्वुर में थे मेरे,
तुम कार साज़ बन के, हक़ीक़त में आ गए.
पोशीदा एक डर था, मेरे ला शऊर में,
माहिर हो नफ़्सियात के, चाक़ू थमा गए.
भेड़ों के साथ साथ, रवाँ आप थे जनाब,
उन के ही साथ गिन जो दिया, तिलमिला गए.
खुद एतमादी मेरी, खुदा को बुरी लगी,
सौ कोडे आ के उसके सिपाही लगा गए.
*****
*मफरूज़ा=कल्पित *कार साज़=सहायक *ला शऊर=अचेतन मन *नफ़्सियात=मनो विज्ञानं *खुद एतमादी=आत्म विश्वास
No comments:
Post a Comment