ग़ज़ल
अनसुनी सभी ने की, दिल पे ये मलाल है,
मैं कटा समाज से, क्या ये कुछ ज़वाल है।
कुछ न हाथ लग सका, फिर भी ये कमाल है,
दिल में इक क़रार है, सर में एतदाल है।
जागने का अच्छा फ़न, नींद से विसाल है,
मुब्तिला ए रोज़ तू , दिन में पाएमाल है।
ख्वाहिशों के क़र्ज़ में, डूबा बाल बाल है,
ख़ुद में कायनात मन, वरना मालामाल है।
है थकी सी इर्तेक़ा, अंजुमन निढाल है,
उठ भी रह नुमाई कर, वक़्त हस्बे हाल है।
पेंच ताब खा रहे हो, तुम अबस जुनैद पर ,
खौफ़ है कि किब्र? है कैसा ये जलाल है
No comments:
Post a Comment