ग़ज़ल
चेहरे यहाँ मुखौटे हैं, और गुफ्तुगू हुनर,
खाते रहे फ़रेब हम, कमज़ोर थी नज़र।
हैं फ़ायदे भी नहर के, पानी है रह पर,
लेकिन सवाल ये है, यहाँ डूबे कितने घर।
पाले हुए है तू इसे, अपने ख़िलाफ़ क्यूँ ,
ये खौफ़ दिल में तेरे, है अंदर का जानवर।
होकर जुदा मैं खुद से, तुहारा न बन सका,
तुम को पसंद जुमूद था, मुझ को मेरा सफ़र।
पुख्ता भी हो, शरीफ भी हो , और जदीद भी,
फिर क्यूँ अज़ीज़ तर हैं, तुम्हें कुहना रहगुज़र।
हस्ती का मेरे जाम, छलकने के बाद अब,
इक सिलसिला शुरू हो, नई रह हो पुर असर।
जुमूद=ठहराव *जदीद=नवीन *कुहना रहगुज़र=पुरातन मार्ग
No comments:
Post a Comment