Thursday, June 6, 2013

JUNBISHEN 27


रुबाई 

इंसान नहीफों को दवा देते हैं 
हैवान नहीफों को मिटा देते हैं ,
है कौन समझदार यहाँ दोनों में ,
कुछ देर ठहर जाओ बता देते हैं 
*
सच्चे को बसद शान ही, बन्ने न दिया
बस साहिबे ईमान ही, बन्ने न दिया
पैदा होते ही कानों में, फूँक दिया झूट
इंसान को इंसान ही, बन्ने न दिया
*
ये लाडले, प्यारे, ये दुलारे मज़हब
धरती पे घनी रात हैं, सारे मज़हब
मंसूर हों, तबरेज़ हों, या फिर सरमद
इन्सान को हर हाल में, मारे मज़हब

1 comment:

  1. सुन्दर प्रस्तुति..।
    साझा करने के लिए आभार...!

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