नज़्म
दस्तक
घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1 ,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक .
बाज़ार तेरे खैर की बरकत की लगी है ,
अय्यार लगाए हैं दुकानें , जो ठगी है .
तुज्जार2 तेरी शक्लें हजारो बनाए हैं ,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं , तेवर चढ़ाए हैं .
अल्लाह बड़ा है , तू बड़ा है , तू बड़ा है ,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है .
कब तक यह फसानों की हवा छाई रहेगी ,
माजी3 की सियासत की वबा छाई रहेगी .
सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर ,
हो जाए न महशर4 से ही पहले कोई महशर .
अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी ,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी .
१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय
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