रुबाइयाँ
नन्हीं सी मेरी जान से जलते क्यों हो,
यारो मेरी पहचान से जलते क्यों हो,
तुम खुद ही किसी भेड़ की गुम शुदगी हो,
मुंकिर को मिली शान से जलते क्यों हो.
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आजमाइशें हुईं, करीना आया,
चैलेंज हुए कुबूल, जीना आया.
शम्स ओ कमर की हुई पैमाइश,
लफ्फाज़ के दांतों पसीना आया.
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मुमकिन है कि माज़ी में ख़िरद गोठिल हो,
समझाने ,समझने में बड़ी मुश्किल हो,
कैसा है ज़ेहन अब जो समझ लेता है,
मज़मून में मफ़हूम अगर मुह्मिल हो.
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ये ईश की बानी, ये निदा की बातें,
आकाश से उतरी हुई ये सलवातें ,
इन्सां में जो नफ़रत की दराडें डालें,
पाबन्दी लगे ज़प्त हों इनकी घातें.
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कहते हैं कि मुनकिर कोई रिश्ता ढूंढो,
बेटी के लिए कोई फ़रिश्ता ढूंढो,
माँ बाप के मेयर पे आएं पैगाम,
अब कौन कहे , अपना गुज़िश्ता ढूंढो.
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