तुम भी जो अगर सोचो, विचारो तो सुनो,
अब्हाम के शैतान को मरो तो सुनो,
कुछ लोग बनाते हैं तुम्हें अपना सा ,
खुद अपना सा बनना है जो यारो तो सुनो.
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बच्चे को बसद शान ही बनने न दिया,
बस साहिबे इमान ही बनने नदिया,
पैदा होते ही कानों फूंक दिया झूट,
इन्सान को इन्सान ही बनने न दिया.
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ये लाडले, प्यारे ये दुलारे मज़हब,
धरती पे बड़ा झूट हैं सारे मज़हब,
मंसूर हों, तबरेज़ हों या फिर सरमद,
इंसान को हर हाल में मारे मज़हब.
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हैवान हुवा क्यों न भला तख्ताए मश्क़,
इंसान का होना है रजाए अहमक़,
शैतान करता फिरे इंसान से गुनाह,
अल्लाह करता रहे उठ्ठक बैठक.
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बहुत खूब..................
ReplyDeleteअनु