Thursday, July 5, 2012

Rubaaiyan

रुबाइयाँ   


लगता है कि जैसे हो पराया ईमान, 
या आबा ओ अजदाद से पाया ईमान , 
या उसने डराया धमकाया इतना , 
वह खौफ के मारे ले आया ईमान. 
चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत, 
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लानत, 
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है? 
जब खुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत . 
अल्लाह ने बनाया है जहान ओ इन्सां, 
मशकूक ख़िरद है कि  कहूं न या हाँ, 
इक बात है, यक़ीनन सुनो या न सुनो, 
अल्लाह को बनाए है, कयासे- इन्सां. 
जब गुज़रे हवादिस तो तलाशे है दिमाग, 
तब मय की परी हमको दिखाती चराग़, 
रुक जाती है वजूद में बपा जंग, 
फूल बन कर खिल जाते हैं दिल के सब दाग 
औलादें बड़ी हो गईं, अब उंगली छुडाएं , 
हमने जो पढाया है इन्हें, वो हमको पढ़ें, 
हो जाएँ अलग इनकी नई दुनया से, 
माँ बाप बचा कर रख्खें, अपना खाएँ. 

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