रुबाइयाँ
लगता है कि जैसे हो पराया ईमान,
या आबा ओ अजदाद से पाया ईमान ,
या उसने डराया धमकाया इतना ,
वह खौफ के मारे ले आया ईमान.
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चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत,
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लानत,
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है?
जब खुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत .
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अल्लाह ने बनाया है जहान ओ इन्सां,
मशकूक ख़िरद है कि कहूं न या हाँ,
इक बात है, यक़ीनन सुनो या न सुनो,
अल्लाह को बनाए है, कयासे- इन्सां.
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जब गुज़रे हवादिस तो तलाशे है दिमाग,
तब मय की परी हमको दिखाती चराग़,
रुक जाती है वजूद में बपा जंग,
फूल बन कर खिल जाते हैं दिल के सब दाग
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औलादें बड़ी हो गईं, अब उंगली छुडाएं ,
हमने जो पढाया है इन्हें, वो हमको पढ़ें,
हो जाएँ अलग इनकी नई दुनया से,
माँ बाप बचा कर रख्खें, अपना खाएँ.
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