Friday, June 22, 2012

rubaiyaan


रुबायाँ 


 हदों के टट्टू  
इक उम्र पे रुक जाए, जूँ बढ़ना क़द का,
कुछ लोगों में हश्र है, इसी तरह खिरद का,
मुजमिद खिरद को ढोते हैं सारी उम्र,
रहता है सदा पास मुसल्लत हद का.
*
सोई हुई उम्मत

कुछ रुक तो ज़माने को जगा दूं तो चलूँ,
मैं नींद के मारों को हिला दूं तो चलूँ,
मौत किसी मूज़ी को जप कर आजा,
सोई हुई उम्मत को उठा दूं तो चलूँ.
*
औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं

औरत को गलत समझे कि आराज़ी है,
यह आप के ज़ेहनों में बुरा माज़ी है,
यह माँ भी, बहन बेटी भी, शोला भी है,
पूछो कि भला वह भी कहीं राज़ी है.
*
फुसफुसा फुसफुसा ईमान

क्यों तूने बनाया इन्हें बोदा यारब!
ज़ेहनों को छुए इनका अकीदा यारब,
पूजे जो कोई मूरत, काफ़िर ये कहें,
खुद क़बरी सनम पर करें सजदा यारब.

1 comment:

  1. बेहतरीन..................
    कठिन लफ़्ज़ों के मायने भी लिख दें तो और मज़ा आये हम कमअक्लों को..

    सादर
    अनु

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