रुबाइयाँ
मेरा दीन
साइंस की सदाक़त पे यकीं रखता हूँ,
अफकार ओ सरोकार का दीं रखता हूँ,
सच की देवी का मैं पुजारी ठहरा,
बस दिल में यही माहे-जबीं रखता हूँ.
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मुल्ला
ना ख्वान्दा ओ जाहिल में बचेंगे मुल्ला,
नाकारा ओ काहिल में बचेगे मुल्ला,
बेदार के क़ब्जे में समंदर होगा,
सीपी भरे साहिल पे बचेगे मुल्ला.
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अल्ला मियाँ
इन्सान के मानिंद हुवा उसका मिज़ाज ,
टेक्सों के एवज़ में ही चले राजो-काज,
है दाद-ओ-सितद में वह बहुत ही माहिर,
देता है अगर मुक्ति तो लेता है खिराज.
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पिदरम सुल्ताँ बूद
अल्फाज़ के मीनारों में क्या रख्खा है,
सासों भरे गुब्बारों में क्या रख्खा है,
इस हाल को देखो कि कहाँ है मिल्लत,
माज़ी के इन आसारों में क्या रख्खा है.
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 29/5/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
ReplyDeletesundr....
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