Wednesday, July 29, 2015

Junbishen 667


क़तआत

बंधक

ऋण के गाहक बन बैठे हो,
शून्य के साधक बन बैठे हो,
किस से मोक्ष और कैसी मोक्ष,
ख़ुद में बंधक बन बैठे हो।

प्रेत आत्माएं

जेब में कुछ ले के आए हो कि बस दर्शन किया,
मैं हूँ मर्यादा पुरूष, है मूल्य मेरा रूपया,
तुम ने ही जन्मा है हम को, नाम ज्ञानेश्वर दिया,
जी रहा हूँ ऐश से ऐ बेवकूफ़ो! शुक्रया.

ढलान
हस्ती है अब नशीब१ में, सब कुछ ढलान पर,
कोई नहीं जो मेरे लिए, खेले जान पर,
ख़ुद साए ने भी मेरे, यूँ तकरार कर दिया,
सर पे है धूप, लेटो, मेरा क़द है आन पर।

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