नज़्म
ग्यारहवीं सदी की आहें
हमारे घर में घुसे, बस कि धड़धदाए हुए ,
वो डाकू कौन थे? इन वादियों में आए हुए ।
यक़ीन ओ खौफ़,सज़ा और तमअ1की तलवारें ,
अजीब रब था कोई, उनको था थमाए हुए ।
खुदाए सानी2 बने हुक्मरां,वज़ीर ओ सिपाह ,
सितम के तेग़ थे, हर शख्स में चुभाए हुए ।
जेहाद उनकी बज़िद थी, लडो या जज़या दो ,
नहीं तो ज़ेहनी गुलामी, को थे जताए हुए ।
दलाल उसके, रिया कारियों3 का दीन लिए ,
दूकाने अपनी थे, हर कूंचे में सजाए हुए ।
दोबारा रोपे गए हैं, वह शजर4 हैं 'मुंकिर',
महद5 से माँ के हैं, ज़ालिम उसे उठाए हुए ।
१-लालच २-द्वतीय ईश्वर ३-ढोंगी ४-पेड़ ५-पालना
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