Sunday, July 26, 2015

Junbishen 665

रुबाईयाँ

दिल वह्यी ओ इल्हाम से मुड जाता है, 
हक शानासियों से जुड़ जाता है,
देख कर ये पामालिए सरे-इंसान,
'मुंकिर' का दिमाग़ भक्क से उड़ जाता है. 

मुझको क्या कुछ समझा, परखा तुम ने ,
या अपने जैसा ही जाना तुमने,
मेरे ईमान में फ़र्क़ लाने का ख़याल ,
चन्दन पे गोया सांप पाला तुमने . 

हो सकता है ठीक दमा, मिर्गी ओ खाज,
बख्श सकता है जिस्म को रोगों का राज,
तार्बियतों* की घुट्टी पिए है माहौल, 
मुश्किल है बहुत मुंकिर ज़ेहनों का इलाज.

तहरीक सदाक़त1 हो दिलों में पैदा ,
तबलीग़ जिसारत2 हो दिलों में पैदा ,
बतला दो ज़माने को खुद भी बुत है ,
फितरत3 की अक़ीदत4 हो दिलों में पैदा। 
१ सच्चै २ साहस ३ लौकिक ४ आस्था 

सौ बार करो गौर ग़लत तुम तो नहीं ,
हो जाए अगर अपने ख़यालों पे यकीं ,
कंजोर बनो और न मुआफ़ी मांगो ,
बकती रहे दुन्या , बुलाता फिरे दीं .

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