Monday, July 27, 2015

Junbishen 666

रुबाईयाँ

आज़ादी है सभी को कोई कुछ माने ,
अजदाद* के जोगी को पयम्बर जाने ,
या अपने कोई एक खुदा को गढ़ ले ,
गुस्ताखी है औरों को लगे समझाने .
*पूर्वज 

है बात कोई गाड़ी यूँ चलती जाए ,
विज्ञान के युग में भी फिसलती जाए , 
ढ़ोती रहे सर पे , अवैज्ञानिक मिथ्या ,
पीढ़ी को लिए वहमों में ढलती जाए .

इक उम्र पे रुक जाए, जूँ बढ़ना क़द का,
कुछ लोगों में हश्र है, इसी तरह खिरद1 का,
मुजमिद2 खिरद को ढोते हैं सारी उम्र,
रहता है सदा पास मुसल्लत3 हद का.
1- बौधिक छमता 2-जमी हुई 3-थोपी हुई 

कुछ रुक तो ज़माने को जगा दूं तो चलूँ,
मैं नींद के मारों को हिला दूं तो चलूँ,
ऐ मौत किसी मूज़ी को जप कर आजा,
सोई हुई उम्मत* को उठा दूं तो चलूँ.
मुसलमानों  

औरत को गलत समझे कि आराज़ी* है,
यह आप के ज़ेहनों में बुरा माज़ी है,
यह माँ भी, बहन बेटी भी, शोला भी है,
पूछो कि भला वह भी कहीं राज़ी है.
 *खेतियाँ 


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