Thursday, June 25, 2015

Junbishen 652 Ghazal 15




ग़ज़ल
सच्चाइयों ने हम से, जो तक़रार कर दिया,
हमने ये सर मुक़ाबिले, दीवार कर दिया.

अपनी ही कायनात से, बेज़ार जो हुए,
इनको सलाम, उनको नमरकर कर दिया।

तन्हाइयों का सांप, जब डसने लगा कभी,
खुद को सुपुर्दे गज़िए, गुफ़्तार कर दिया।

देकर ज़कात सद्का, मुख़य्यर अवाम ने,
अच्छे भले ग़रीब को बीमार कर दिया।

हाँ को न रोक पाया, नहीं भी न कर सका,
न करदा थे गुनाह, कि इक़रार कर दिया।

रूहानी हादसात ओ अक़ीदत के ज़र्ब ने,
फितरी असासा क़ौम का, बेकार कर दिया.

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