Tuesday, May 12, 2015

junbishen 635 Ghazal 5

 ग़ज़ल

तालीम नई जेहल1 मिटाने पे तुली है,
रूहानी वबा२ है, कि लुभाने पे तुली है।

बेदार शरीअत3 की ज़रूरत है ज़मीं को,
अफ्लाफ़4 की लोरी ये सुलाने पे तुली है।

जो तोड़ सकेगा, वो बनाएगा नया घर,
तरकीबे रफ़ू, उम्र बिताने पे तुली है।

किस शिद्दते जदीद की, दुन्या है उनके सर
बस ज़िन्दगी का जश्न, मनाने पे तुली है।

मैं इल्म की दौलत को, जुटाने पे तुला हूँ,
कीमत को मेरी भीड़, घटाने पे तुली है।

'मुंकिर' की तराजू पे, अनल हक5 की  धरा6 है,
"जुंबिश" है कि तस्बीह के दानों पे तुली है।

१-अंध विशवास २-आध्यात्मिक रोग ३-बेदार शरीअत=जगी हुई नियमावली ४-आकाश ५- मैं ख़ुदा हूँ 6- वह वजन जो तराजू का पासंग ठीक करता है

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