Monday, May 18, 2015

Junbishen 637 Ghazal 8

 ग़ज़ल

अगर ख़ुद को समझ पाओ, तो ख़ुद अपने ख़ुदा हो तुम,
 किन किन के बतलाए हुओं में, मुब्तिला हो तुम।

है अपने आप में ही खींचा-तानी, तुम लडोगे क्या ?
इकट्ठा कर लो ख़ुद को, मुन्तशिर हो, जा बजा1 हो तुम।

मरे माज़ी2 का अपने, ऐ ढिंढोरा पीटने वालो!
बहुत शर्मिन्दा है ये हाल, जिस के सानेहा3 हो तुम।

तुम अपने ज़हर के सौगात को, वापस ही ले जाओ,
कहाँ इतने बड़े हो? तोह्फ़ा दो मुझ को, गदा4 हो तुम।

फ़लक़ पर आक़बत 5 की, खेतियों को जोतने वालो,
ज़मीं कहती है इस पर एक, दाग़े बद नुमा हो तुम।

चलो वीराने में 'मुंकिर' कि फुर्सत हो ख़ुदाओं से,
बहुत मुमकिन है मिल जाए खुदाई भी, बजा हो तुम.

१-बिखरे हुए २-अतीत ३-विडम्बना ४-भिखरी ५-परलोक

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