Tuesday, May 26, 2015

Junbishen 641 Nazm 2


Nazm
बइस्म ए सिद्क़ 1
(सच्चाई के नाम से शुरू करता हूँ )

यह जुम्बिशें हैं दिल की, बेदारी2 सू ए ज़न2+ की ,
हैं रूह की खराशें, टीसें हैं मेरे मन की ।

रस्मो की बारगाहें3 ,बाज़ार हैं चलन की ,
बोसीदा4 हो चुकी हैं, दूकानें यह सुख़न5 की ।

फ़रमान ए  साबक़ा6 के, ऐ बाज़ गाश्तो7 ठहरो ,
अब होगी आज़माइश, थोड़े से बांकपन की ।

आतश फिशां8 की नोबत, आए तो क्यूं न आए ,
बेचैन हो चुकी हैं, पाबंदियां दहन* की ।

जिस झूट में सदाक़त10, साबित हुई हो शर से ,
उस सिद्क़11 को ज़रूरत है गोर12 और कफ़न की ।

तालीम नव13 के तालिब14, अब अर्श१५ छू रहे हैं ,
डोरी न इनको खींचे, इन शेखो बरहमन की

गर दिल पे बोझ आये, ईमान छट पटाए ,
ऐसे क़फ़स१६से निकलो, छोडो फ़िज़ा चुभन की ।

हम सब ही आलमीं17हैं, भूगोल सब की माँ है ,
आओ बढाएं अज़मत18, हम मादर ए वतन की।

धर्मो से पाई मुक्ति, मज़हब से पाई छुट्टी ,
इंसानियत की बूटी, पीडा हरे है मन की ।

तामीर19 में है बाकी, जो ईंट, वोह है 'मुंकिर',
मेमार20 इसको चुन दे, तकमील21 हो चमन की।

१-प्रचलित बिस्मिल्लाह या श्री गणेश २-जागरण 2+ MITURITY३-दरबार ४-जीर्ण ५-वाणी ६-पुरानेआदेश ७-प्रति -ध्वनी
८-ज्वाला-मुखी ९-मुख (दहन =मुँह)१० सत्यता 11-सत्य 12 -कब्र १३-नवीं शिक्छा १४-इच्छुक १५-आकाश १६-पिंजडा १७-अन्तर राष्ट्रीय 18 मर्यादा 19-रचना 20-रचना कार २१-सम्पूर्णता.

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