Wednesday, February 26, 2014

Junbishen 152



मुस्कुराहटें 

साझेदारी 

फ़न का माहिर हूँ ज़ात रखता हूँ ,
मैं उरूज़ी बिसात रखता हूँ ,

बस कि आवाज़ ही नहीं पाई ,
तुम में मूसूक़ी है मेरे भाई .

आओ ग़जलों का कारोबार करें ,
अपनी ग़ुरबत को शर्म सार करें ,

दाल रोटी का कुछ सहारा हो ,
ग़ज़लें मेरी गला तुम्हारा हो ,

आधे आधे की हिस्से दारी हो ,
मैं हूँ शायर कि तुम मदारी हो . 

2 comments:

  1. वज़ीरो-वज़अदार हो कि शाओशुतुर..,
    बाज़ी-दर बाज़ी शहो-मात रखता हूँ.....

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  2. हम्म माल उम्दा है बिकेगा नहीं..,
    जब तलक समँदर का कनारा न हो.....

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