मुस्कुराहटें
टक्कर
था तबअ आज़ाद दहकाँ ,शेख़ ए बातिल का था वाज़ ,
"मैं उसे सौ ऊँट दूंगा , जो पढ़े सौ दिन नमाज़ ."
पा के लालच ऊँट का, दहकाँ वह राज़ी हो गया ,
गोया अगले रोज़ से, पाजी नमाज़ी हो गया .
सौ दिनों के वाद आए शेख जब उसके यहाँ ,
बोले बेटा पास मेरे ऊँट और घोडे कहाँ ,
तुझको कर देना नमाज़ी, बस मुझे दरकार था ,
राह में मस्जिद के बस, तू ही खटकता ख़ार था .
शेख़ की वादा खिलाफ़ी पर था उसका ये जवाब ,
बे वज़ू के मैंने भी, टक्कर लगाए हैं जनाब .
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