रूबाइयाँ
अल्लाह उन्हें रख्खे, उनकी क्या बात,
हर वक़्त रहा करते हैं सब से मुहतात,
खाते हैं छील छाल कर रसगुल्ले,
पीते है उबाल कर मिला आबे-हयात.
फ़िरऔन मिटे, ज़ार ओ सिकंदर टूटे,
अँगरेज़ हटे नाज़ि ओ हिटलर टूटे,
इक आलमी गुंडा है उभर कर आया,
अल्लाह करे उसका भी ख़जर टूटे.
हलकी सी तजल्ली से हुआ परबत राख,
इंसानी बमों से हुई है बस्ती ख़ाक,
इन्सान ओ खुदा दोनों ही यकसाँ ठहरे,
शैतान गनीमत है रखे धरती पाक.
शकरी बीमारी शरीफ को असुर बना देती है..,
ReplyDeleteदावते-दरबारे 'खास' में मजबूर बना देती है..,
ज़रा लबों पे क्या रखी जबाँ ही जला देती है..,
फोड़े बन के फूटती है औ नासूर बना देती है.....