क़तअ
सज़ा ए दोबाला
जीने न दिया घर में, तुर्बत में अब जियो ,
शैदाइयों की मानो तो शिद्दत में जियो ,
तुमको ही मारने में, खुद मर गया है शौहर ,
मेरी बहन ये क्या है, कि इद्दत में अब जियो .
जहाज़ का पंछी
नाहक़ था मैं ही , हक़ पे तुम्हीं थे , जहाँ थे तुम ,
मैं उड़ के थक गया तो ज़मीं पर निशाँ थे तुम ,
मैं आ गया हूँ भूले हुए घर को लौट कर ,
मानिंद माँ के पूछ लो, अब तक कहाँ थे तुम .
कुत्तों का ग़लबा
बेचने दो उसे इंसानी लहू का माजून ,
पुश्त पर उसके है, मौजूदा सदी का क़ानून ,
मुझको फ़िलहाल तो कुत्तों से बचाओ यारो ,
फिर कभी लिखखूँगा, हड्डी की ख़ता पर मज़मून .
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