रुबाइयां
आजमाइशें हुईं, करीना आया,
चैलेंज हुए कुबूल, जीना आया.
शम्स ओ कमर की हुई पैमाइश,
लफ्फाज़ के दांतों पसीना आया.
मुमकिन है कि माज़ी में ख़िरद गोठिल हो,
समझाने ,समझने में बड़ी मुश्किल हो,
कैसा है ज़ेहन अब जो समझ लेता है,
मज़मून में मफ़हूम अगर मुह्मिल हो.
ये ईश की बानी, ये निदा की बातें,
आकाश से उतरी हुई ये सलवातें ,
इन्सां में जो नफ़रत की दराडें डालें,
पाबन्दी लगे ज़प्त हों इनकी घातें.
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