हास्य
ध्यान का ज्ञान
इक ध्यानी ध्यान में था , डूबा विधान में था ,
इच्छा थी उसको पाऊँ , फिर दुनिया को दिखाऊँ .
लेकिन बड़ी थी मुश्किल , होना ये ग़र्क ए कामिल
कोई विचार आता , प्रयत्न टूट जाता .
उसने गुरु बनाया , जो उसके काम आया .
गुरुवर ने दक्षिना ली , भंग उसको फिर पिला दी .
उसको नशा जो आया , धीरे से खिलखिलाया .
बोला गुरु , मिला कुछ ? "हाँ और भी पिला कुछ "
जब पूरी चढ़ गई भंग ,शागिर्द रह गया दंग .
प्रसाद गुड का खाता , लड्डू के मज़े पता .
उठ कर वह नाच जाता ,फिर तालियाँ बजाता .
जिसको वो ध्यान करता , वह सामने गुज़रता .
भगवान् पा चुका था, मुक्ति कमा चूका था .
*
No comments:
Post a Comment