Friday, December 26, 2008

तवारीखी सानेहे



तारीख़ी  सानेहे

खंडहरों में नक्श हैं माज़ी1की शरारतें,

लूटने में लुट गई हैं ज़ुल्म की इमारतें।


देख लो सफ़ीर तुम, उस सफ़र में क्या मिला,

थोड़ा सा सवाब2 था, ढेर सी हिक़ारतें3.


बात क़ायदे की है, अपनी ही ज़ुबाँ में हो,

मज़हबी किताबों की, तूल तर इबारतें।


है अज़ाबे-जरिया ज़ालिमों की क़ौम पर,

मिट गईं तमद्दुनी दौर की इमारतें।


क़ाफ़िला गुज़र गया नक्शे-पा पे धूल है,

पा सकीं न रहगुज़र सिद्क़ की हरारतें।


शर्मसार है खुदा, उम्मातें ज़लील हैं,

साज़िशी मुहिम वह थी, बेजा थीं जिसारतें१० 



१-अतीत २- पुण्य ३-अपमान ४-लम्बी ५-जरी रहने वाला प्रकोप ६-सभ्यताओं की ७-सत्य ८-अनुपालक ९-वर्ग १०-साहस


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