Saturday, December 20, 2008

ईश वाणी



ईश वाणी

मैं हूँ वह ईश,

कि जिसका स्वरूप प्रकृति है,

मैं स्वंभू हूँ ,

पर भवता के विचारों से परे,

मेरी वाणी नहीं भाषा कोई,

न कोई लिपि, न कोई रस्मुल-ख़त,

मेरे मुंह, आँख, कान, नाक नहीं,

कोई ह्रदय भी नहीं, कोई समझ बूझ नहीं,

मैं समझता हूँ , न समझाता हूँ ,

पेश करता हूँ , न फ़रमाता हूँ,

हाँ! मगर अपनी ग़ज़ल गाता हूँ।

जल कि कल कल, कि हवा की सर सर,

मेरी वाणी है यही, मेरी तरफ़ से सृजित,

गान पक्षी की सुनो या कि सुनो जंतु के,

यही इल्हाम ख़ुदावन्दी1 है।

बादलों की गरज और ये बिजली की चमक,

हैं सदाएं मेरी,

चरमराते हुए, बांसों की खनक ,

हैं निदाएं मेरी.

ज़लज़ले, ज्वाला-मुखी और बे रहेम तूफाँ हैं,

मेरे वहियों3 की नमूदारी है।

ईश वाणी या ख़ुदा के फ़रमान,

जोकि कागज़ पे लिखे मिलते हैं,

मेरी आवाज़ की परतव5 भी नहीं।

मेरी तस्वीर है ,आवाज़ भी है,

दिल की धड़कन में सुनो और पढो फ़ितरत में॥



१-खुदा की आवाज़ २-आकाश वाणी ३-ईश वाणी ४-उजागर ५-छवि ६-प्रकृति

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