Wednesday, May 18, 2016

Junbishen 790



ग़ज़ल

ये जम्हूरियत बे असर है,
संवारे इसे, कोई नर है?

बहुत सोच कर खुद कशी कर,
किसी का तू ,नूरे नज़र है.

दिखा दे उसे क़ौमी दंगे,
सना ख्वान मशरिक, किधर हैं.

बहुत कम है पहचान इसकी,
रिवाजों में डूबा बशर है.

नहीं बन सका फर्द इन्सां,
कहाँ कोई कोर ओ कसर है.

है ऊपर न जन्नत, न दोज़ख,
खला है, नफ़ी है, सिफ़र है.

इबादत है, रोज़ी मशक्क़त,
अज़ान ए कुहन, पुर ख़तर है.

ये सोना है, जागने की मोहलत,
जागो! ज़िन्दगी दांव पर है.

है तक़लीद बेजा ये 'मुंकिर',
तेरे जिस्म पर एक सर है.
*****
*जम्हूरियत=गण-तन्त्र *नूरे नज़र=आँख का तारा *सना ख्वान मशरिक=पूरब का गुण-गण करने वाले*खला, नफ़ी=क्षितिज एवं शून्य * तकलीद=अनुसरण.



غزل

یہ جمہوریت بے اثر ہے 
سنوارے اسے کوئی نار ہے ٠

بہت سوچ کر خود کشی کر 
کسی کا تو نور نظر ہے ٠ 

دکھا دے اسے قومی دنگے
ثنا خوان مشرق کدھر ہے ٠ 

بہت کم ہے پہچان اسکی 
رواجوں میں ڈوبا بشر ہے ٠ 

نہیں بن سکا فرد انساں
کہاں پر یہ کور و کثر ر ہے ٠ 

ہے اوپرنہ جنّت نہ دوزخ
خلا ہے ، نفی ہے ، صفر ہے ٠ 

عبادت ہے روزی مشقت 
اذان کہن پر خطر ہے ٠ 

یہ سونا ہے جگنے کی مہلت 
جگو زندگی دانو پر ہے ٠ 

ہے تقلید بے جہ یہ منکر 
ترے جسم پر ایک سر ہے ٠ 

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