Friday, May 20, 2016

Bedariyan 10



ग़ज़ल

नई सी सिंफ़े सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, खुशी की, न ग़म की बात करो।

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही, दिलेरी की दम की बात करो।

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक़ की, धर्म की बात करो।

मुआमला है, करोड़ों की जिंदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश 7हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।

तलाशे सिद्क़े ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब ख़ुदा की, सनम की बात करो।

बहुत ही खून पिए जा रहे हैं, ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को, जो दैरो हरम12 की बात करो।

१-काव्य-विधा २-नई बात ३-कुर्सी ४-सम्पूर्ण-संधि ५-पूँजी ६-नया संविधान ७-शरीर का कान बन जाना ८-धरती की लटें ९-अनिस्तत्व --क्षितिजि-सच्चाई ११-चुम्बकीय १२-मंदिरों-मस्जिद


غزل 

نئی سی صنف سخن ہو . نعم کی بات کرو
نہ جھوٹ سچ کی ، خوشی کی نہ غم کی بات کرو ٠ 

نہ بیٹھ جانا، کہ مسند ہے صلح کل کی یہ
کھڑے کھڑے ہی دلیری کی دم کی بات کرو ٠ 

اتار آؤ عقیدت کو، ساتھ جوتوں کے
ہمارے بزم میں حق کی، دھرم کی بات کرو.٠ 

معاملہ ہے کروڑوں کی زندگی کا یہ
سیاستوں کے کھلاڑی ، نہ بم کی بات کرو ٠ 

یہ چاہتے ہو ہمہ تن ہی گوش ہو جایں
ہوں الجھے ، گیسو ے ارضی ، عدم کی بات کرو.٠ 

تلاش صدق خلا ، کتنے مقنا تیشی ہیں 
نہ اب جناب ! خدا ، نہ صنم کی بات کرو ٠ 

بہت ہی خون پئے جا رہے ہیں یہ منکر 
قسم ہے تم کو جو دیر حرام کی بات کرو ٠ ٠ 

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