Friday, September 25, 2015

Junbishen 691



ताज़ियाने १

एहसासे कम्तरो२ तुम, ज़ेहनी गदागरो3तुम,
पैरों में रह के देखा, अब सर में भी रहो तुम।

इनकी सुनो न उनकी, ऐ मेरे दोस्तों तुम,
अपनी खिरद4 की निकली, आवाज़ को सुनो तुम।

दुनिया की गोद में तुम, जन्में थे, बे-ख़बर थे,
ज़ेहनी बलूग्तों5 में, इक और जन्म लो तुम।

अंधे हो गर, सदाक़त, कानों से देख डालो,
बहरे हो गर, हकीक़त, आखों से अब सुनो तुम।

ख़ुद को संवारना है, धरती संवारनी है,
दुन्या संवारने तक, इक दम नहीं रुको तुम।

मैं खाक लेके अपनी, पहुँचा हूँ पर्वतों तक,
ज़िद में अगर हो क़ायम, पाताल में रहो तुम।

१-कोड़े २-हीनाभासी3-तुच्छाभास ४-बुद्धि -बौधिक 5-ब्यासकता

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