Sunday, September 20, 2015

Junbishen 689



 ग़ज़ल

बेखटके जियो यार, कि जीना है ज़िन्दगी,
निसवां1 है हिचक ,खौफ़ , नरीना2 है ज़िन्दगी।

खनते को उठा लाओ, दफ़ीना है ज़िन्दगी,
माथे पे सजा लो, कि पसीना है ज़िन्दगी।

घर, खेत, सड़क, बाग़ की, राहें सवाब हैं,
काबा न मक्का और न मदीना, है ज़िन्दगी।

नेकी में नियत बद है, तो मजबूर है बदी,
देखो कि किसका कैसा,  क़रीना है ज़िन्दगी।

जिनको ये क़्नाअत3 की नफ़ी4, रास आ गई,
उनके लिए ये नाने-शबीना5 है ज़िन्दगी।

अबहाम6 की तौकों से, सजाए वजूद हो,
'मुंकिर' जगे हुए पे, नगीना है ज़िन्दगी।

१-स्त्री लिंग २-पुल्लिग़ ३-संतोष ४-आभाव ५-बासी रोटी ६-अंध-विशवास

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